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अब यह कमोबेश तय है कि मोदी/भाजपा के राज में ईपीएस पेंशनभोगियों को माननीय सुप्रीम कोर्ट के 4.11.22 के फैसले के अनुसार उनका हक नहीं मिलने वाला है। साथ ही एनएसी की न्यूनतम पेंशन की मांग भी पूरी नहीं हो पाएगी। हमारी कमजोरी यह है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक देशभर में पेंशनभोगी फैले हुए हैं और उनमें से अधिकांश 75 साल से ऊपर के हैं और वे स्वर्ग जाने के दिन गिन रहे हैं। मोदी और उनकी सरकार इन तथ्यों से वाकिफ हैं और इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट के समर्थन से वे नई पेंशन और बकाया राशि के भुगतान में देरी कर रहे हैं। अन्यथा किसी भी सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश को लागू करने में इतना लंबा समय नहीं लगता। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में एक नई खबर आई थी कि ईपीएफओ करीब 97000 पेंशनभोगियों को मांग पत्र भेज रहा है। लेकिन ईपीएफओ ने इस खबर की पुष्टि या खंडन नहीं किया है।  ईपीएफओ ने नियोक्ताओं को अपनी मंजूरी देने के लिए 31 मई तक का समय दिया था।

लेकिन किसी को नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ और ईपीएफओ ने इस मामले पर क्या कार्रवाई की और साथ ही ईपीएफओ ने उन नियोक्ताओं के खिलाफ क्या कार्रवाई की जिन्होंने उनके अनुरोध का जवाब नहीं दिया।

नियोक्ता की मंजूरी की यह आवश्यकता ईपीएफओ द्वारा खेली गई देरी की चाल थी। जब वे 2014 से पहले सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान कर रहे हैं तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नई पेंशन का भुगतान करने के लिए फिर से नई मंजूरी की आवश्यकता क्यों है?

ये सब देरी की चाल है। और कुछ नहीं। अब 23 नवंबर को सीबीटी की बैठक होने जा रही है।

बैठक का एजेंडा कल सोशल मीडिया पर आया। उसमें नई पेंशन भुगतान या बकाया भुगतान का कोई उल्लेख नहीं है।

इसलिए जैसा कि कुछ पेंशनभोगियों ने सोशल मीडिया में उल्लेख किया है कि यह दिवाली के बाद का मिलन समारोह होगा। और कुछ नहीं।

ऊपर वर्णित तथ्यों के मद्देनजर, कोई भी यही कह सकता है कि हमारे नेता अशोक जी इस उम्र में जगह-जगह यात्रा करके अपना समय खराब कर रहे हैं।  मोदी एंड कंपनी को हमारी मेहनत की कमाई से जीवन का आनंद लेने दो। जय हिंद

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